फागण सुदी तेरस को छः गाऊ की यात्रा

 विक्रम कुशलराजजी सुराणा
*फागण की फेरी क्यों*


कितने सालों से चली आ रही  छ: गांउ  की यात्रा में कौन से स्थल आते हैं यानी मंदिर भगवान नेमिनाथ के समय हुवे हुए कृष्ण महाराज के पुत्रों में शाम्ब  प्रद्युमन नाम के दो पुत्र थे। भगवान नेमिनाथ की पावन वाणी सुनकर साम्ब प्रद्युमन जी को वैराग्य हुआ। भगवान के पास दीक्षा लेकर और भगवान की आज्ञा  लेकर शंत्रुजय  गिरिराज पर तपस्या और ध्यान करने लगे। अपने सभी कर्मों से मुक्त होकर फागण सुदी तेरस के दिन शंत्रुजय  गिरिराज का भाडवा के डूंगर ऊपर से मोक्ष मुक्ति पाए थे। इन्हीं के दर्शन करने के लिए लगभग 84हजार वर्षों से यह फागन के फेरी चल रही है। फागण की फेरी में आते हुए दर्शन के स्थल दादा के दरबार में से निकलने के बाद रामपाल दरवाजे से छ:गांउ की यात्रा प्रारंभ होती है। उसमें पांच दर्शन के स्थल है। 1-6 गांउ की यात्रा प्रारंभ होती है।100 पगतिया के बाद ही देवकी माता के 6 पुत्रो का समाधि मंदिर आता हैं‌ वो यहां मोक्ष गए थे। (कृष्ण महाराज के 6 भाई का मंदिर)‌2-उलखा जल नाम का स्थल आता है। जहां दादा का पक्षाल आता है। ऐसे कहते हैं‌ और वहीं स्थल यहां पर आदिनाथ भगवान के पगले हैं। 3 चंदन तलावड़ी आती है। या पर अजीतनाथ और शांतिनाथ भगवान के पगले हैं। चैत्यवंदन में  अजीत शांति बोलते हैं। और चंदन तलावड़ी पर नो लोग्गस का काउस्सग  करते हैं। लोग्गस नहीं आता हो तो 36 नवकार मंत्र का जाप कर सकते हैं।4- भाडवा का डूंगर पर शाम्भ प्रद्युमन की डेरी यानी मंदिर आता है‌ इसी के ही दर्शन का महत्व हैं। आज के दिन,‌और यहा मंदिर में पगले हैं। यहा चैत्यवंदन  करने का होता है।5- सिद्ध वड़ का मंदिर यह मंदिर पाल के अंदर ही हैं। यहां पर आदिनाथ भगवान का मंदिर है। यहा पांचौ स्तरों पर चेत्यवंदन करने होता हैं।और जय तलेटी -  शांतिनाथ - रायण पगला - आदिनाथ दादा - पुण्डंरिक स्वामी यह भी पांच स्थल पर चैत्यवंदन करने का होता है। यात्रा करो तो विधि विधान के साथ हमें फागुन तेरस करने जाते हैं। लेकिन हमें इस इतिहास की जानकारी नहीं है कि फागुनी तेरस क्यों की जाती हैं। आप भी जाने और अपने साथियों को भी बताए